सागर: बुंदेलखंड के छोटे से कस्बे के लोगों ने सोचा भी नहीं था कि जब देश गुलाम था और मध्य प्रदेश का वजूद भी नहीं था, तब कोई महामानव यहां अपनी जीवन की जमा पूंजी से विश्व स्तरीय यूनिवर्सिटी की स्थापना कर देगा. सागर के सच्चे सपूत डॉ. सर हरिसिंह गौर ने 18 जुलाई 1946 को 20 लाख की पूंजी से पहाड़ी पर विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. तब भारत में सिर्फ 17 यूनिवर्सिटी थी और इस तरह सागर में 18 वीं यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी.

ये भारत का एकमात्र उदाहरण है, जिसकी स्थापना किसी व्यक्ति ने अपनी निजी पूंजी से की हो, जबकि वह व्यक्ति गरीब साधारण परिवार में जन्मा था. जीवन भर संघर्ष करके विदेश में पढ़ाई की और देश के जाने माने विधिवेत्ता और शिक्षाविद के रूप में उनकी पहचान थी. डॉ. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रथम कुलपति रहे, तो नागपुर यूनिवर्सिटी के भी कुलपति रहे. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम चरण में अपनी जन्म भूमि के लिए ऐसी सौगात दी, जिसकी किसी भी दान से तुलना नहीं की जा सकती है.

साधारण परिवार में जन्मे थे हरिसिंह गौर
हरि सिंह गौर का जन्म सागर की शनिचरी तोड़ी पर 26 नवंबर 1870 को एक गरीब परिवार में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा सागर के गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी. इसके बाद वह जबलपुर पढ़ने चले गए और फिर नागपुर के हिलसप कॉलेज में पढ़ाई की. उन्हें स्कूली शिक्षा से लेकर कॉलेज तक स्कॉलरशिप मिलती रही. नागपुर में कॉलेज में पढ़ाई के दौरान पूरे प्रांत में प्रथम स्थान हासिल किया था. 19 साल की उम्र में हरिसिंह गौर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए. जहां उन्होंने दर्शन शास्त्र और अर्थशास्त्र में ऑनर्स की उपाधि हासिल की.

फिर एमए करने के बाद एलएलएम और एलएलडी की डिग्री 1908 में हासिल की. केंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज में डी लिट और एल एल डी की पढ़ाई की. विदेश में करीब 23 साल पढ़ाई करने के बाद डॉ. हरिसिंह गौर 1912 में भारत वापस आ गए. उन्हें भारत आने पर सरकारी नौकरी मिल गयी. महज 3 महीने नौकरी के बाद डॉ. गौर ने देश के कोने-कोने में वकालत शुरू कर दी. जल्द ही वकालत के क्षेत्र में उनकी ख्याति फैलने लगी. जबलपुर, कोलकाता, रंगून, लाहौर और कई जगहों पर वकालत करने के बाद डॉ. गौर फिर इंग्लैंड चले गए और प्रीवी काउंसिल में करीब 4 साल वकालत की.

वकालत के साथ शिक्षाविद की ख्याति
डॉ. हरिसिंह गौर ने वकालत के क्षेत्र में जितना नाम कमाया, उतनी ही ख्याति उनकी शिक्षाविद के रूप में हुई. 1921 में जब दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई, तो उन्हें दिल्ली यूनिवर्सिटी का संस्थापक कुलपति बनाया गया. इसके अलावा दो बार नागपुर यूनिवर्सिटी के भी कुलपति रहे. प्रारंभिक शिक्षा सागर में करने के बाद जबलपुर, नागपुर और फिर विदेश जाने के कारण उनके मन में हमेशा टीस थी कि उनकी जन्मभूमि सागर में कोई बड़ा शैक्षणिक संस्थान नहीं है. इसी बात को लेकर उन्होंने तय कर लिया कि अपनी जन्मभूमि सागर में विश्व स्तरीय यूनिवर्सिटी की स्थापना करेंगे.

उनकी कोशिशें को कई बार नाकाम करने की कोशिश की गई. कई बड़ी हस्तियों ने उन पर विश्वविद्यालय नागपुर, जबलपुर और रायपुर जैसे शहरों में खोलने का दबाव बनाया. लेकिन वह किसी भी दबाव की तरफ नहीं झुके और उन्होंने अपने प्रयासों से सागर में यूनिवर्सिटी की स्थापना का अपना संकल्प पूरा किया. 18 जुलाई 1946 को सागर यूनिवर्सिटी की स्थापना के बाद वह चाहते थे कि पिछड़े और गरीबी का दंश झेल रहे बुंदेलखंड में लोगों को उच्च शिक्षा का अवसर मिले. उनका सपना था कि सागर यूनिवर्सिटी कैंब्रिज और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी जैसी ख्याति अर्जित करें.

20 लाख में खोली यूनिवर्सिटी और 2 करोड़ वसीयत में दिए दान
18 जुलाई 1946 को सागर में यूनिवर्सिटी की शुरुआत ब्रिटिश सेना के मकरोनिया स्थित बैरक में हुई थी. लेकिन उन्होंने यूनिवर्सिटी बनाने के लिए करीब 1400 एकड़ में फैली पहाड़ी का चयन किया था. उस दौर में उन्होंने 20 लाख रुपए खर्च करके विश्वविद्यालय की स्थापना की. इसके बाद वह अपनी वसीयत में दो करोड़ रुपए सागर यूनिवर्सिटी के लिए दान में लिख गए थे.

डॉ. हरिसिंह गौर ने देश के जाने-माने विद्वानों को सागर लाकर कई ऐसे विषयों की पढ़ाई शुरू की थी, जो देश के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय में नहीं होती थी. उन्होंने जियोलॉजी, क्रिमिनोलॉजी, फॉरेंसिक साइंस, एंथ्रोपोलॉजी और कई ऐसे विषयों की पढ़ाई शुरू कराई थी, जो उस दौर में आमतौर पर बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में होती थी.

 

 

आत्मकथा में नहीं किया उल्लेख
वैसे तो डॉ. हरि सिंह गौर ने वकालत, दर्शन और कई क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक किताबें लिखी हैं. लेकिन उन्होंने 1941 से 1945 के बीच अपनी आत्मकथा 'सेवन लाइव्ज' लिखी थी. जिसका अनुवाद सागर के वरिष्ठ पत्रकार राजेश श्रीवास्तव ने हिंदी में किया है. वह बताते हैं कि, ''डॉ. हरि सिंह गौर ने अपनी जन्मभूमि पर बड़ी मुश्किलों के बाद यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी और वह चाहते थे कि यूनिवर्सिटी कैंब्रिज और हार्वर्ड की तरह मशहूर हो. जब वह यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए संघर्षरत थे, तभी वह अपनी आत्मकथा भी लिख रहे थे. लेकिन उसमें कहीं भी यूनिवर्सिटी की स्थापना का उल्लेख नहीं है.''